मेरी परछाई

सूरज के चढ़ते ही वो
मेरे संग संग हो लेती है
जहाँ-जहाँ मैं चलूँ वो
मेरे आगे पीछे ही रहती है.
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मेरे हर एक काम में वो
रखती साझेदारी है
साथ छूटे, चाहे सबका
वो रखती वफ़ादारी है.

मेरे अक्स में नानी,माँ सी
वो अक्सर मिल जाती है
और कभी मेरे प्यारे नन्हों में
मुझको झांसा दे जाती है.
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पर ये केवल प्यार अनुराग की
रोशनी में ही जीवित रहती है
घृणा, द्वेष के घोर अंधियारे में
परछाई न जीवित रहती है.
स्वरचित :
अपर्णा शर्मा  April 12th,24

मैं सेमल (वासंतिक पुष्प)

हे मानव!
जन्म होते ही जिसने तुझे थाम लिया
दादी,नानी के दुलार ने मुझे तकिया बना दिया
वो रुई मैं ही रहा, मैं सेमल।

सड़क किनारे, जंगलो में
तुम्हारे आसपास खड़ा रहा
मेरी नुकीली पत्तियों को जब तब
तू निरर्थक समझता रहा
कंटीले तने, डाली सब ,वैद्य मैं ही हूँ
मैं सेमल।
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विद्यालय के मैदान में, जब कभी मेरे  बीज़ उड़ कर तुम्हें देखने आए
तुम और तुम्हारे दोस्तों को मानो
मुझे फूँक मारने के निराले खेल
आजमाये.
तुम्हारे बचपन की यादों में एक मैं भी हूँ।
मैं सेमल।

यौवन समय में तुम मुझसे ही सीखे अपने विछोह को सहना.
विरह में तप कर अग्नि रूपी फ़ूलों से अपनी काया सजाना.
पतझड़ में प्रिय पत्रों का विछोह तुम्हें भी उतार चढ़ाव सिखा गए, वो मैं हूँ।
मैं सेमल।
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सिखाता रहा सदा प्रेम में विरह और उसका सुंदर परिणाम.
मेरा पुष्प तभी बन पाया अतुलनीय गुणों की खान।
देखने में धधकता सूरज स्पर्श मानो रेशम, वो मैं ही हूँ।
मैं सेमल।

ग़र तुम जीना चाहते हो सुंदर  जीवन को
समझ लेना मेरे जीवन की गहराई को
माना उपेक्षित सा वृक्ष हूँ पर भरा हूँ अच्छाइयों से, ये मैं ही हूँ।
मैं सेमल।
अपर्णा शर्मा  April 5th,24

खाली हाथ*

जीवन में एक से बढ़कर एक मिलता रहा
उनके बिना जीना नामुमकिन सा लगता रहा.

जीवन में रच बस कर ,जीवन का सुकून से लगे
सोचता,कुछ ना छूटे,सब यूहीं मिलता रहे.
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हर वस्तु,मित्र,रिश्ते और शहर भी रूह से जुड़े रहे
इनके बिना जीना भी क्या जीना सा लगता रहे.

छूट गए सब, समय के साथ साथ और खाली हाथ रह गए
शायद इसको कहते हैं कि हम हाथ मलते रह गए।
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अब सुबह शाम की दवा बताए,कि तेरे बिना भी क्या जीना
यहीं है जीवन के भंवर में,सांसो की नाव को भरसक खेना।
अपर्णा शर्मा
March29th,24

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