घुँघरूओं की रूनझुन से दूर
प्रेम पदचिन्हों की छाप
मन आँगन के द्वार पर ली जैसे
नववधु के प्रथम पग की छाप।
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सहेज कर रखा है उसे
कोरे मन की श्वेत चादर पर
संदूक के कोने में समेट कर
दाग से बचा, सम्भाल कर।
प्रेम का विछोह,दर्शित है
उर्मिला के जीवन की सच्चाई में
प्रेम मात्र पाना नहीं, है खोना
खो जाना अनंत प्रेम की गहराई में।
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प्रेम के चरण चिन्हों को
अपने मन मंदिर में सजाकर
और चरण वंदन करता रहूँ
जीवन के हर शुभ अवसर पर।
अपर्णा शर्मा
July18th,24
आस
पिता,भाई,प्रेमी, पति के संग-संग,पुत्र भी लिखा कर लाए हैं जीवन पर्यंत संघर्ष
और माँ,बहिन,प्रेमिका,पत्नी के संग-संग पुत्री को मिला है जीवन पर्यंत का इंतजार।
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स्त्री,पुरुष दोनों ही अपने अपने क्षेत्र में अपना अव्वल दिए जाते हैं
तभी तो संघर्ष और इंतजार एक साथ सफल हो जाते हैं।
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दोनों एक दूजे के आस्था और प्रेम को जेहन में रखते हैं
इस तरह संघर्ष और इंतजार संग प्रेम को भी जीत जाते हैं।
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काश ! कभी,किसी की भी किसी से,आस खत्म न हो
कभी वो उसके संग खड़ा हो, कभी उसके संग वो खड़ा हो।
अपर्णा शर्मा
July12th,24
ये ख़ामोशियां
अंदेशे का शिकार होती हैं ख़ामोशियां
एक तरफा शिकायत होती है ख़ामोशियां
कहते हैं आते तूफ़ाँ की पहचान होती है ये
बड़े ज़ख्मों के लिए तैयार करती हैं ख़ामोशियां।
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इन्द्रधनुषी पुष्पों के उपवन सी प्रसन्नता से पहले
अनंत दुख के महा सागर में डुबोने के तुरंत पीछे
अक्सर ही अनचाही सी सर्वत्र पसर जाती है
न जाने कितना बोलती है ये ख़ामोशियां।
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हर कोने में घूम-घूमकर है बूड़बुड़ाती
शांत परिवेश में बेइंतिहा ही बतियाती
जीवन की बदलती हर करवट का अंदाजा देकर
बिन कहे सब कह जाती है ये ख़ामोशियां।
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महफ़िल का साथ ख़ामोशियां नहीं करती है पसंद
एकांत ही लगे श्रेष्ठ,जैसे से पुष्प में छिपा मकरंद
मन ही मन बात बना कर ये वाचाल खामोशी
मंज़िल की राह दिखा देती हैं ये ख़ामोशियां।
अपर्णा शर्मा
July 5th,24
