तस्वीर*

होश संभालते ही, कुछ तस्वीरें बनी जेहन में
जिनमें रचा,पहाड़,झरने और चिड़िया बना मैं।

थोड़ी सी ज़मी, जहाँ बैठ कर रास्ते देख लूँ
थोड़ा सा आसमाँ,अपनी मंजिल ढूँढ लूँ।
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आसान सी सफर-ए-तस्वीर रखी दिल में
कठिन रही डगर-ए-तकदीर असल में।

लगातार मंजिल को उठते रहे कदम
घुमावदार रास्ते थकाते रहे कदम दर कदम।
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आसमाँ की ऊँचाई पर,मंजिल कर रही इंतजार
झुका और,चल दिया खड़ी सीधी चढ़ाई पर।

बस यहीं एक रास्ता लगा,जिंदगी के सफर का
सोचा मिली ग़र मंजिल,छू लूँगा दामन आसमाँ का।
अपर्णा शर्मा
Dec.20th,24

चुगली

चुगली ना करते गर दुनिया में
तो ख़बरों को दीमक लग जाती.
सब लाड-प्यार से रहते,आपस में
जिंदगी जैसे, निरस हो जाती।

मुश्किल होता,समय काटना
काया रोगी जैसी हो जाती.
बिन चुगली के, सोचो जरा
दुनिया रंग भरी ही रह जाती।

चुगली संक्रामक बीमारी सी
एक से दूजे को झट लग जाती.
सुन्दर,संवरी दुनिया को,सहसा ही
कितना बदरंग कर जाती।

सुर में सुर मिलाकर, निंदा करना
अद्भुत समां बाँधता हैं
समय भूलकर, इस निंदा राग में
अद्भुत ही आनंद आता है।

हास परिहास भरी चुगली
परिवेश को हल्का है करती
अफवाहों में लिपटी चुगली
दिलों में फासला है करती।
अपर्णा शर्मा
Dec.13th,24

प्रेम

खिले खिले से शोख रंग
लहराती, सिमटती तरंग
मन तितलियों सा बावरा
घुल जाए जब मीठी सुगंध।
आनंद का विस्तार है यहीं,
सच्चे प्रेम का सागर है यहीं।
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शिकवे,शिकायत हो जब धूमिल
अधरों पर स्मिता हो जब सात्विक
मौन की हो जब अनवरत वार्ता
यहीं रुप है प्रेम का आत्मिक।
आनंद का विस्तार है यहीं,
सच्चे प्रेम का सागर है यहीं।
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चाह बस हो, जब साथ की
हर कदम, हर एक साँस की
बेहिचक, तत्पर समर्पण को
बात हो चाहे प्रेम या भक्ति की।
आनंद का विस्तार है यहीं,
सच्चे प्रेम का सागर है यहीं।
अपर्णा शर्मा
Dec.6th,24

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