सुन री सखी!
बात करे कुछ,इधर-उधर की.
छुट्टी कर के,सब तामझाम की
मेरी अपनी, कुछ, तेरी अपनी
आ! बात करे कुछ मन की।
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सुन री सखी!
बात करे सुख और दुख की
शूल सी चुभती, असह्य पीड़ा की
कुछ तीखी, कुछ मीठी-मीठी
आ! बात करे कुछ मन की।
सुन री सखी!
जो बात सबसे कह न सकी
जो बात पराई कर न सकी
अपनेपन के आस में डूबी
आ बात करे कुछ अपनी सी।
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सुन री सखी!
हल्के-फुल्के मनभावन किस्से
उठा-पटक के अनसुलझे हिस्से
सच्ची-झूठी मनगढंत सी गप्पे
आ बात करें लफ्फाजी की।
अपर्णा शर्मा
Jan.10th, 25
तपिश
सोना तप कर कुंदन बने
लोहा बने औजार
यूँही हिमखंड तप कर बने
निर्मल जल की धार।
जब प्रेम पर विरह ताप के
बरसे तेज अंगार
प्रेम रूप बदल कर हुआ
जीवन का आधार।
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राधा कृष्ण सी भक्ति जगे
मिले जीवन को आकार
प्रेम के ताप में तपकर उठे
पूर्ण समर्पण भाव।
तपिश, अथाह प्रेम की
ना जाने लोकाचार
रोम-रोम,साँस में बसे
जिन अंखियों में है प्यार।
अपर्णा शर्मा
Jan.3rd,25
सार साल का
बरसो से, साल दर साल जहाज में सवार होते रहे
न जाने कितने ही, वादों के जहाजो को उड़ाते रहे।
कई दफा ये, कागज़ी वादों के जहाज, फटते रहे
कई दफा ये जहाज,वादे समेत धूल फांकते रहे।
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कभी-कभी अपने को, वादों का सरताज मानते हुए
सावधानी से जान को कुर्बान होने से बचाते रहे।
हवाई किले के साथ-साथ, जहाज भी हवा हवाई उड़ाए
हकीकत से परे,फ़साना सच तक के सपने फिर देख आए।
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बचे साल के कुछ दिनों में साल का नफा नुकसान माप कर
फिर, नए साल के जहाज को फिर नए वादों से सजा रहे।
अपर्णा शर्मा
Dec.27th,24
