माँ का वंदन

हे आदिशक्ति, हे जगतमाता
कैसे तेरा वंदन करुँ
हे सती साध्वी,गणपति माता कैसे तेरा अभिनंदन करुँ।

न पुष्प चढ़े, न धूप जले, कुछ भी न कर पाऊँ मैं.
माँ, कहकर जब पुकारुँ,पल भर में तर जाऊँ मैं।
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नवा के मस्तक, जोड़ के हाथ,इतना ही कर पाऊँ मैं.
हे जगमाता!तेरी अनूठी महिमा से भवसागर तर जाऊँ मैं।

हे कन्या,युवती,वृद्धमाता तू साकार रूप में सदा ही विचरे.
कैसे पूजन करुँ तेरा ? ऐसे, मन में भाव उठे।
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हे आदिशक्ति! हे जगतमाता, कैसे तेरा वंदन करुँ ?
कैसे अभिनंदन करुँ?तुझको मैं नमन करुँ,प्रतिपल मैं मनन करुँ।
अपर्णा शर्मा Oct. 1st 25

संवेदना

पैत्रिक घरों और जमीनों से नाता तोड़ते ही
इकाई घरों में अपना आशियाना बनाते ही
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संवेदनाएं प्रायः सुप्त हो गई है इंसानों में
सुख में सुखी और दुख में दुखी कोई दिखता नहीं.
अपर्णा शर्मा
Sept.30th,25

रुद्राणी

भोर की अंगडाई संग,करती दिवस का प्रारम्भ.
हथेलियों में ईश दर्शनऔर करती धरा को प्रणाम।

व्रत-उपवास, नियमित पूजा से सदा रहती परे.
मंत्र,जप,108 नामवाला भी दूर रहते हैं खड़े।

चकरघन्नी बन गृह की,सबकी मनोवृति पहचानती.
वृद्ध जनों के मुख पर शांति देख अर्चना हो जाती।
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वृद्धों से स्नेह कर उनको मुस्कान दे जाती.
घर की सहायिका की पीढ़ा में कन्धा बन जाती।

छोटी बच्चियों में निडरता, आत्म विश्वास भर जाती.
दृढ़ नास्तिक,माँ के मंदिर में अनुपस्थित हो जाती।

हैरान करती वो,बिन पूजा कैसे मनोहर जीवन बिताती?
जीवन को तपा स्वयं ऐसी नारी स्वयं रुद्राणी कहलाती।
अपर्णा शर्मा
Sept. 26th,25

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