स्मृति

आजीवन कोई साथ नहीं देता
यादें ही साथ निभाती हैं
शरीर कभी साथ नहीं देते
रिश्तों में याद रह जाती हैं।
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छोड़ चले अपने जो संसार 
वो यादों में रिसते हैं
भरे पूरे इस संसार में
हम उजड़े से रहते हैं।

रिश्तें की मजबूती जो
जो हरपल जीना सिखलाती
वो यादों की पोटली बन
जीवन जीर्ण-शीर्ण कर जाती।
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एहसास सदा ही जिवित रहते
वो कभी नहीं मरते
स्मृति चिन्हों के विसर्जन से भी
स्मृतियों संग ही जीते।
अपर्णा शर्मा
Jan.17th,25

फल

धन-धन सब करे, मति न मांगे कोई।
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मतिहीन होए के, धन कैसे फल देई।।
अपर्णा शर्मा
Jan.14th,25

सुन री सखी !

सुन री सखी! 
बात करे कुछ,इधर-उधर की.
छुट्टी कर के,सब तामझाम की
मेरी अपनी, कुछ, तेरी अपनी
आ! बात करे कुछ मन की।
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सुन री सखी!
बात करे सुख और दुख की
शूल सी चुभती, असह्य पीड़ा की
कुछ तीखी, कुछ मीठी-मीठी
आ! बात करे कुछ मन की।

सुन री सखी!
जो बात सबसे कह न सकी
जो बात पराई कर न सकी
अपनेपन के आस में डूबी
आ बात करे कुछ अपनी सी।
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सुन री सखी!
हल्के-फुल्के मनभावन किस्से
उठा-पटक के अनसुलझे हिस्से
सच्ची-झूठी मनगढंत सी गप्पे
आ बात करें लफ्फाजी की।
अपर्णा शर्मा
Jan.10th, 25

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