वो बरसाती शाम

याद है न,वो बरसाती शाम
किए थे,जब बहुत तामझाम
जल्दी निकला था मैं उस दिन
छोड़ कर अपने सारे काम.
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काली घटा सुबह से छाई थी
हवा चली थी मद मस्त चाल
शाम के पहले निकला ही था
कि मौसम ने बदली अपनी ताल.

घनघोर बादल और अंधियारी
चौराहे पर थी चुप्पी अति भारी
इक बच्ची, वहॉं गुब्बारों के संग
बेच रही थी, संग अपनी लाचारी.
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जाने क्यूँ मैं चल न सका था
जड़ सा बिल्कुल वहाँ खड़ा था
तुम उकता कर चले गई थी
मैं सब गुब्बारे खरीद रहा था.

तुम संग चाय और मैं का होना
जैसे सदियाँ पल में हो जीना
पर बच्ची की एक वो मुस्कान 
जैसे सुकून का प्याला हो पीना.
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जब जब आती ये बरसाती शाम
यादों की बरसातें लाती ये शाम
तुम्हारा बस ‘मैं’ में ही रह जाना
मुझे ‘मुझसे’ मिलवा गई वो शाम
अपर्णा शर्मा
July4th,25

इश्क भी अकेला

सच है कि इश्क फुर्सत का मेला है,जिसमें मशरूफियता का अपना ही रेला है।
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गर इश्क में,न हो किसी एक को भी फुर्सत,तो संजीदा इश्क भी इस जहाँ में अकेला हैं.
अपर्णा शर्मा
July1st,25

कब बरसेंगे?

घन-घनाते घिर आए बदरा
तपती धरा को भाए बदरा
तरसे धरती, तरसे प्रकृति
कब बरसेंगे ? काले बदरा।
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टीटहरी की अब एक ही टेर
मोर को नाचने में हो रही देर
दादूर बाहर आने को व्याकुल
कब बरसेंगे ? काले बदरा।
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सूखी अंखियन,पी की प्यासी
खेती सूखी, बिन पानी सारी
गांव,शहर सब बिन पानी सूखे
कब बरसेंगे ? काले बदरा।
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जागी, पुरवाई से आस बड़ी
बीती गई अब आधी आषाढ़ी
धरे ओसारे , उपले,लक्कड़
कब बरसेंगे ? काले बदरा।
कब बरसेंगे ? आस के बदरा।
अपर्णा शर्मा
June27th,25

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