विस्मृति

अर र र पहचानो ये क्या हो रहा है
अर र र संभाल लो ये क्या हो रहा है।

चलते चलते अचानक रुक जाता हूँ
बोलते बोलते बातों में बहक जाता हूँ
सोचता हूँ बहुत,कि सब भूल जाता हूँ
अर र र बताओ थोड़ा रुका हूँ या थका हूँ।

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गणित के सवाल अब पढ़ नहीं पाता
सवाल का जवाब अब बनाया नहीं जाता
शब्द और भाव जाल में अक्सर फंसता हूँ
अर र र बताओ! कठिन है सब या हैरान हूँ।

बच्चों के संग,खुद को वरिष्ठ समझ बैठा
वरिष्ठ समूह में, बिल्कुल ही नादान  दिखा
धमाल भी न कर सका,न संजीदगी से जिया हूँ
अर र र बताओ! क्या जिंदगी को समझ न सका हूँ।

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कभी-कभी भूलों को पहचानने की कोशिश में
उलझा रहता हूँ अपनी ही रची कशमकश में
उम्र के नहीं, काम के बोझ के कारनामों में दबा हूँ
अर र र बताओ! क्या विस्मृत सा स्मृतियों में जी रहा हूँ।
अपर्णा शर्मा
March21st,25

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