शायद अभिमन्यु…….

जीवन के संघर्ष भरे चक्रव्यूह में
वीर अभिमन्यु से लड़ जाए
प्रवीण हो कर, पराक्रम रूप में
योद्धाओं से फिर भिड़ जाए
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जब निरंतर व्यूह के संघर्षों में
शिकंजा मजबूती से कस जाए।
स्वरचित कृत्रिम इस संसार में
कोई ओर-छोर नज़र न आए
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तब एक संवाद स्वयं का स्वयं से
कर लेना आवश्यक हो जाए
अपनी शक्ति,अपनी दुर्बलता से
अपना साक्षात्कार हो जाए

फिर सहसा,सर्व शक्ति एकत्र हो
वीर अर्जुन सा भान करा जाए
सभी चक्रों को भेद, विजयी हो
शायद अभिमन्यु बाहर निकल आए

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