शब्दों की थिरकन

शब्दों में शब्द जोड़ते रहे
यहीं कविता है सोचते रहे
पर अभाव मिला जब भाव का
सारे शब्द निरर्थक हो रहे।

कभी भावों का देख बवंडर
गोते खाते रहे यूँ ही दिन भर
लिखने को जब उठाई कलम
भाव का बह गया शब्द समंदर।

वो क्षण भी चमत्कार से कम न होते
जब भाव मनमस्तिष्क पर उमड़ घुमड़ छाते
शब्द मेघ की घनघोर रिमझिम से
बंजर मनजमीं को भाव तृप्त कर जाते।

और फिर कलम भी गुनगुनाने लगती
शब्दों की थिरकन कागज़ पर नृत्य करती
हर भाव शब्द संग करता वादन
तब कहीं कविता अपना संगीत पूर्ण करती।
अपर्णा शर्मा
Nov.24th,23

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