मैंने यहाँ वहाँ संपूर्ण संसार में
जीवन खो दिया उसकी खोज में ।
आजकल कोई उसे जानता नहीं
उसे व उसके स्पर्श पहचानता नहीं ।
अधिकांशतः
वह मिल जाता है,कभी राह में
ऐसा होता है सिर्फ़ स्वप्न में ।
स्वार्थ की दुर्गन्ध से लिप्त
खो गया किसी चौराहे पर ।
एक दिन
सिसकियाँ, कराहना सुना मैंने
लावारिस पड़ा घाव देखता वह ।
मुझे बेबसी से उसने देखा
कहा ,
मुझे ही तुम खोजते हो ।
मैं ही प्रेम हूँ,
लावारिस हूँ।।
दिखावे के लिए मुझे सब अपनाते है
और स्वार्थ में अंधे हो
यहाँ छोड़ जाते है।
अपर्णा शर्मा Feb. 21st,25 (पुनः प्रकाशित)
