मुखौटे

इक मासूम चेहरा ईश्वर प्रदत
उसपर सजे मुखौटे अनगिनत।

कभी सत्य का, कभी असत्य का
कभी प्रेम का और कभी छल का।
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जब जिस मुखौटे से काम निकले.
वहीं मुखौटा ठाठ से मुख पे चमके।

यदि दुनिया परिचित हुई,इस कला की
विषादिता ही सिर्फ मित्र है ऐसे इंसान की।
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स्वयं सदा वास्तविक रूप में ही रहिए
मुखौटावानों को पहचानते ही सतर्क होइए।
अपर्णा शर्मा
19th May 23

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