प्रेम से खूब सँवारे थे
ख़यालों से सहेजे थे
सब ने पोषित किए
मोहब्बत के रिश्ते थे.
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प्रेम के बीज़ बो कर
लता सा मिला आकार
इक दूजे के गलबहियां
बीत रहा समय संसार.
क्षण के सोच का असर
छा गया फिर इस कदर
छन से टूट गया रिश्ता
बिखरा काँच सा इधर-उधर.
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रिश्ता रुसवा हो गया
काँच दिल में चुभता गया
समय पर न सचेतना
रिश्ते को दाग दे गया.
अपर्णा शर्मा
April 19th,24
