संस्कार के वाहक सदा रहे हैं कुटुंब
और गुरुओं ने दी जीवन की पहचान
सम्पूर्ण ज्ञान पुस्तक में ही रह जाता
गर गुरु न कराते हमें इसका भान।
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शिशु रुप में जन्म लेकर बालक
शिशु बुद्धि से पूरा कर जाता जीवन
नहीं सीख पाता वो सांसारिकता
गर गुरु न बनाते शिशुओ को इंसान।
विद्या से ही पाते बालक ज्ञानार्जन
और संग में करते चरित्र निर्माण
सही गुरु के सानिध्य से ही बालक पाते
धनोपार्जन का, इस जग में, अनुपम सम्मान।
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शिक्षा में घुमक्कड़ी भी होता है एक प्रकार
देश विदेश का ज्ञान कराए बिना किसी तकरार
समूह में कार्य करना सीख जाते ऐसे ही बालक
और पाते एतिहासिक और भौगोलिक ज्ञान का भंडार।
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गुरु का बखान शब्दों में कभी नहीं हो सकता
समाज और संस्कृति से शिक्षक का महत्व झलकता
यदि हमारे जीवन में निस्वार्थी गुरुजन न होते
जीवन शायद सभी का कोरा कागज ही रह जाता।
अपर्णा शर्मा
Sept.6th, 23
गुरु
सदा से,बालक की प्रथम गुरु, माँ ही कहलाती।
ममता में वशीभूत हो, नेह भरी दुनिया दिखलाती।
पिता जीवन में, सदैव से कटु पाठ पढ़ाते।
बालक को दुनिया की,सत्यता का ज्ञान कराते।
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एक गुरु ही है जो बालक को शुद्ध पाठ पढ़ाते।
कभी प्रेम से,कभी डपट से दुनिया को दिखाते।
संस्कारों से परिपूर्ण बालक घर का मान बढ़ाता।
व्यवहार सीखा गुरु, बालक को,उन्नति का मार्ग दिखाता।
(गुरु पूर्णिमा पर)
अपर्णा शर्मा
July 3rd, 23
