गुलमोहर

उदास दिल को मनाने
मधुर पल को संजोने
करते हो जब तुम आलिंगन 
ऐ गुलमोहर! कैसे हो बहलाते ?
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प्रतिवर्ष स्वर्ण सा खरा तपकर
कुंदन सा तुम पोर-पोर खिलकर
शीतलता भी तुमसे मिले प्रेम तपिश में
ऐ गुलमोहर! कैसे चमकते हो चुप रह कर?

जब भी तुम्हारी छत्रछाया में होती खड़ी
बुन जाती है,प्रेम की अमिट मंजुल लड़ी
तुम भी बारिश से पत्रों में बरस बरस कर
ऐ गुलमोहर! कैसे बनाते हो यादो की सुनहरी घड़ी?
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शीत से हिम हुए सुप्त प्रेम को 
तुम्हीं बढ़ा जाते हो प्रेम ताप को
पुष्पपत्र झरते मानो प्रेम पत्रों के शब्द बिखर गए
ऐ गुलमोहर !कैसे समेटते हो हर लम्हे को ?
और मैं अपने वज़ूद में कहीं ढूँढती हूँ गुलमोहर को?
स्वरचित:
अपर्णा शर्मा  June 28th,24

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