पतझड़

शरद ऋतु के आते ही, रंग बरसाते वृक्षों को देखा
धीमे-धीमे फिर मौसम का मिजाज बदलते देखा।
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पतझड़ तो मौसम का फेरा, फिर वृक्षों को हरे होते देखा
जिस घर आया पतझड़, उस घर को खण्डहर होते देखा।
अपर्णा शर्मा
Oct.7th,25

संवेदना

पैत्रिक घरों और जमीनों से नाता तोड़ते ही
इकाई घरों में अपना आशियाना बनाते ही
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संवेदनाएं प्रायः सुप्त हो गई है इंसानों में
सुख में सुखी और दुख में दुखी कोई दिखता नहीं.
अपर्णा शर्मा
Sept.30th,25

मुखबरी

इंसानो पर हमने खूब नज़र रखी,सम्भल सम्भल कर हर बात रखी।
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मुखबरी करी तो करी इन नजरों ने,जो हमेशा सिर पर सजा कर रखी।
अपर्णा शर्मा
Sept. 23rd,25

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