जड़ हुए शरीरों ने
समेट लिया कोलाहल
बंध खोलते मनों ने
अपना लिया सारा मौन।
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वचनों, वादों का संसार
शुष्क सा यथार्थ बन गया
इक दूजे से मिलन,भेंट
अब स्वपन सा हो गया।
वहीं मंदिर की चौखट
और नदी की बहती धारा
बदली सी बहकी अवस्था
दूर तक न दिखता किनारा।
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जड़ हुई इस दुनिया में
वृक्ष सरीखे मैं और तुम
मौसम सी आस लिए
और हमारा अनवरत प्रेम।
अपर्णा शर्मा August16th,24
