अनकही

मंज़िल की तलाश में
अनजानी सी राह में
अवरोधों से बेफिक्र
चलते रहे ,साथ में।
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हाथ को लेकर हाथ में
डूबे एक से विचार में
हम बनकर हमसफर
मंजिल की तलाश में.
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दिखे नहीं किसी विवाद में
पड़े नहीं कभी तकरार में
बस साथ का लिए यकीं
आ गए आखिरी पड़ाव में।
अपर्णा शर्मा
August 29th, 25

अनकही

कर अधिकांशत लगता देश हेतु योगदान
जो करदाताओं में भरता उच्च स्वाभिमान।
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पर जब कभी, हद से ज्यादा मन मारना पड़ जाए
तब उन्हीं करदाताओं को, सजा जैसा देता भान
अपर्णा शर्मा
Aug.6th,24

अनकही

ना उस ने कुछ कहा कभी
ना मैंने करी कोई बतकही।
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फिर भी पहुँच गई उसकी
मुझ तक वो सारी अनकही।
अपर्णा शर्मा
Oct.31st,23

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