जिंदगी के हर खुशनुमा पल में, जब देखा आईना
ग़मों की टीस,दर्द की चीस से होता रहा सामना ।
ग़म के सागर में,डूबते तैरते,गुजर गई ना जाने कितनी रातें
खुशी के पैमाने छलके,तो भी नींद के इंतजार में थी रातें ।
उसकी आँखें ही,मेरे हर अक़्स का हमेशा रही आईना
हर खुशी, ग़म का करती रही जो ताउम्र मुआयना ।
