हे आदिशक्ति, हे जगतमाता
कैसे तेरा वंदन करुँ
हे सती साध्वी,गणपति माता कैसे तेरा अभिनंदन करुँ।
न पुष्प चढ़े, न धूप जले, कुछ भी न कर पाऊँ मैं.
माँ, कहकर जब पुकारुँ,पल भर में तर जाऊँ मैं।
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नवा के मस्तक, जोड़ के हाथ,इतना ही कर पाऊँ मैं.
हे जगमाता!तेरी अनूठी महिमा से भवसागर तर जाऊँ मैं।
हे कन्या,युवती,वृद्धमाता तू साकार रूप में सदा ही विचरे.
कैसे पूजन करुँ तेरा ? ऐसे, मन में भाव उठे।
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हे आदिशक्ति! हे जगतमाता, कैसे तेरा वंदन करुँ ?
कैसे अभिनंदन करुँ?तुझको मैं नमन करुँ,प्रतिपल मैं मनन करुँ।
अपर्णा शर्मा Oct. 1st 25
