बुत सा जीवन

जीवन अपनों की परवाह में अपना न रहा
अपनों के लिए,अपने को खोता चला गया।

सभी का ख़्याल उसे हर वक़्त ही रहा
उनके ख़्याल में अपना ख़्याल खोता गया।
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सभी को परिवार में साथ रहने के गुण सिखा
न जाने क्यों वो खुद अकेला, तन्हा हो गया।

अपने शौक़ भुला,सभी के शौक रखे जिंदा
अपने जीने के ढंग छोड़,अब शोक में खो गया।

सभी की दिनचर्या को रफ्तार दे कर 
उसका जीवन बुत सा स्थिर हो गया।
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ताउम्र फिक्र उसे रहीं,सभी के समुचित विस्तार की
और अपने को इस तरह संकुचित करता गया।

जो उम्र भर सभी को हर तरह से संभालता रहा
वो उम्र के इस पड़ाव पर हर किसी पर निर्भर हो गया।
अपर्णा शर्मा
Sept.21st,25
(अल्जाईमर दिवस पर )

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