फुर्सत में

अपने अपनों से मिलने
परदेस को है जब उड़ते
अपनों को यहाँ छोड़कर
क्या याद हमें भी करते?
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भागमभाग की जिंदगानी में
ऐसे फुर्सत के क्षण भी है आते
उनमें अपनों का अपनापन
क्या वे क्षण खूब रुलाते?
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यहाँ भी इंतजार की घड़ियां
मानो जैसे बंधन की कड़ियां
फुर्सत भी सूनापन गहराती है
देती यादों की जलबुझ लड़ियां।
अपर्णा शर्मा
Oct.20th,23

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