प्रेम

खिले खिले से शोख रंग
लहराती, सिमटती तरंग
मन तितलियों सा बावरा
घुल जाए जब मीठी सुगंध।
आनंद का विस्तार है यहीं,
सच्चे प्रेम का सागर है यहीं।
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शिकवे,शिकायत हो जब धूमिल
अधरों पर स्मिता हो जब सात्विक
मौन की हो जब अनवरत वार्ता
यहीं रुप है प्रेम का आत्मिक।
आनंद का विस्तार है यहीं,
सच्चे प्रेम का सागर है यहीं।
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चाह बस हो, जब साथ की
हर कदम, हर एक साँस की
बेहिचक, तत्पर समर्पण को
बात हो चाहे प्रेम या भक्ति की।
आनंद का विस्तार है यहीं,
सच्चे प्रेम का सागर है यहीं।
अपर्णा शर्मा
Dec.6th,24

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