कुछ किताबें, जो समझ में न आई थी उन्हें सहेजते रहे
कुछ किताबें, जो पसंद आई, उन्हें यूहीं जमा करते रहे।
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ऐसे ही कुछ किताबे है ,जो यदा कदा मिलती रही तोहफे में
इस लत-ए-जमा को, कमाल-ए कुतुब खाना कह रहे। (*कुतुबखाना- library )
अपर्णा शर्मा
July 15th, 25
बोझ
हल्के ,फुल्के, भरे गुब्बारे से
जो जीवन रंगते, मधुर सपने।
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जाने कैसे, काँधे पे आ बैठे
बोझ सरीखा,अब खींच रहे।
अपर्णा शर्मा
July8th,25
इश्क भी अकेला
सच है कि इश्क फुर्सत का मेला है,जिसमें मशरूफियता का अपना ही रेला है।
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गर इश्क में,न हो किसी एक को भी फुर्सत,तो संजीदा इश्क भी इस जहाँ में अकेला हैं.
अपर्णा शर्मा
July1st,25
