दिल

अनुराग संगीत का पान कर
बजता रहे जब उसमें गीत मधुर
नाचता है होकर वो अलमस्त
यूँ चहकता खूब है दिल.

समीर मंद सी बहें, प्रीत की
सुरभि हो, शहद, गुलकंद की
फूस, जेठ के शीत,ताप से परे
यूँ महकता खूब है दिल.
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प्रीत की बारिशों में भीगा
जलबिंदुओं को मोती समझता
प्रेम वर्षा में पूर्ण भीग कर
यूँ स्वर्ण सा चमकता है दिल.
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कनक ताप में तप कर
तपिश को स्वीकार कर
क्षणिक मुश्किलों को समझ
यूँ तपता है प्रेम ज्वर में दिल.
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गर कभी,
नफरतों से हो सामना
अग्नि बाणों सा बरसता
प्रत्यंचा खींचकर,क्रोध चाप की
फिर यूँ तमकता है दिल.
अपर्णा शर्मा
June 13th,25

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