झरोखा

दो भिन्न भिन्न सी जिंदगी को,
रीति रिवाजों की दुनिया को
विभिन्नता का साक्षी बना,
सहेजता मानो, संस्कृति  को।
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हवेली,रजवाड़ों में उत्सुकता को बढ़ाता
राजसी ठाठ-बाट की कहानियां सुनाता
रहस्य और आश्चर्य से भरी उस दुनिया में
आमजन तक विशेषजन का जीवन ले आता।

परंपरा की मखमली चादर से लिपटा हुआ
बंदिशों के चमकते, चुभते तारों से कसीदा हुआ
प्रजा को ललचाता ये हवेली का झरोखा
है आह और बेबसी की मिसाल  ए बददुआ।
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कभी जब झरोखा खुलता है बाहर को
खुली वायु का रसास्वादन कराता बाला को
उसे भी दूसरी दुनिया टेर लगाती प्यार से
ये झरोखा बाँटता आया है आम और खास को।
अपर्णा शर्मा
Mar.1st,24

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