घन-घनाते घिर आए बदरा
तपती धरा को भाए बदरा
तरसे धरती, तरसे प्रकृति
कब बरसेंगे ? काले बदरा।
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टीटहरी की अब एक ही टेर
मोर को नाचने में हो रही देर
दादूर बाहर आने को व्याकुल
कब बरसेंगे ? काले बदरा।
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सूखी अंखियन,पी की प्यासी
खेती सूखी, बिन पानी सारी
गांव,शहर सब बिन पानी सूखे
कब बरसेंगे ? काले बदरा।
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जागी, पुरवाई से आस बड़ी
बीती गई अब आधी आषाढ़ी
धरे ओसारे , उपले,लक्कड़
कब बरसेंगे ? काले बदरा।
कब बरसेंगे ? आस के बदरा।
अपर्णा शर्मा
June27th,25
