खिले खिले से शोख रंग
लहराती, सिमटती तरंग
मन तितलियों सा बावरा
घुल जाए जब मीठी सुगंध।
आनंद का विस्तार है यहीं,
सच्चे प्रेम का सागर है यहीं।
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शिकवे,शिकायत हो जब धूमिल
अधरों पर स्मिता हो जब सात्विक
मौन की हो जब अनवरत वार्ता
यहीं रुप है प्रेम का आत्मिक।
आनंद का विस्तार है यहीं,
सच्चे प्रेम का सागर है यहीं।
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चाह बस हो, जब साथ की
हर कदम, हर एक साँस की
बेहिचक, तत्पर समर्पण को
बात हो चाहे प्रेम या भक्ति की।
आनंद का विस्तार है यहीं,
सच्चे प्रेम का सागर है यहीं।
अपर्णा शर्मा
Dec.6th,24
ओढ़नी
प्रेम के धागों में लिपटी बिटिया आँगन में आई
देखो पूरे घर में खुशियां ही खुशियां मुस्काई।
संस्कारों के रंगों से प्रेम धागे सुंदर रंगे है
सभी के चेहरे उसे देख खिल से गए हैं।
रोज थोड़ा आगत का करघा चुनरी बुनता रहा
भविष्य के लिए बिटिया को ऐसे गढ़ता रहा।
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घर भर की रौनक के सलमें-सितारे सजा कर
लड़कपन की दहलीज पर आ गई मुस्करा कर।
सतरंगी सपनों की किनारी करीने से उसने सजा ली
झिलमिल से गोटे में भविष्य की आस छुपा ली।
धीरे से, जिंदगी ने दायित्वों की लाल चूनर ओढ़ा दी
दुल्हन बन, उसने मान मर्यादा भी अपने से लिपटा ली।
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जब बहु बनी बिटिया ने समय चक्र को पहचाना
तब सही लगा शर्म,हया की चुनरी को अलमीरा में सजाना।
आज भी वो दायित्वों की चादर में लिपटी है
अपनी ममता की ओढ़नी से दे रही रोशनी है।
अपर्णा शर्मा
August 18th, 23
