अमलतास

अग्नि से जलते फूल नहीं,झाड़फानुस लगते हो।
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शीतल समीर संग तुम, चेहरों पर मुस्कान देते हो।
अपर्णा शर्मा
May 6th,25

आईना*

आईना आज मुझ से शिकायत करने लगा
तुझमें अब कुछ पहले सा दिखता नहीं
कैसे अब मैं तुझको खूबसूरत दिखाऊँ
कि नक्श में अब पुराना दिखता नहीं
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वो मासूमियत जो बचपन की सौगात रही
अब आसपास मुझे दिखती ही नहीं
सयानी सी आईने में सजी तेरी ये तस्वीर
जिसमें सुकूं आजकल उभरता ही नहीं।
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मन में सजी तस्वीर को संवारती रहा कर
दृढ़ निश्चयी को दुनिया बदलती नहीं
मुझको साफ़ करने से कुछ न होगा
फराखदिल फितरत को बदलती ही नहीं।
अपर्णा शर्मा
May2nd,25

*फराखदिल-उदार

खामोशी

अलग ही अंदाज में,जीती है खामोशी
चाहे पहली मुलाकात की,हो सरगोशी।
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या आखिरी मुलाकात की,अनगिनत चुप
फैली होती है कुछ बोलती हुई खामोशी।
अपर्णा शर्मा
April29th,25

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