रिश्तों की डोरी

जस की तस दिखती हुई रिश्तों की नाजुक डोरी
कुछ ढीली कुछ खिसकी है प्रीत की गठरी
सिलापन प्यार का कुछ सूखा सा लग रहा
कुछ हैरान सी दिख रही हैं ये जिन्दगी.
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अपना वज़ूद खोकर जो उसी का भला सोचता रहा
जो मात्र उसी से अपने को हमेशा बाँधता रहा
आज क्यूं उसे अपना अंतर्मन ही वेदना में दिखा
रिश्तों में स्नेह का अस्तित्व कुछ डगमगा सा रहा।

कारवाँ सी आगे ही आगे जा रही थी जिंदगी
नदियों के वेग सी जो, रहीं सदा ही बढ़ती
जिंदगी सिमट कर,रह गई बस अपने तक
सूख गई अचानक ये पोषित रिश्तों की नदी।
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कल्पना से परे यथार्थ होती है रिश्तों की डोरी
भावनाओं से परे की कशमकश है रिश्तों की डोरी
छल कर मासूमियत को बार-बार समझदार बनाती
थोड़ा सा स्व स्वार्थ सिखाती है रिश्तों की डोरी।
अपर्णा शर्मा
June6th,25

ब्याह की मेहंदी

इन सुर्ख हाथों में छिपे होते,अनंत एहसास
पिता की उदासी और पिया का अनुराग।
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दो घरों में बंटती हुई,बेटियों की शख्सियत
और घिरे होते अनिश्चितताओं के ढेरों बादल।
अपर्णा शर्मा
June3rd,25

विदा (चले गए)

वो जब हम को छोड़ गए
यादें सब यहीं छोड़ गए
खाली खाली इस मन में
अफ़साने बन कर चले गए।
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सूनी डगर से जब निकलो
हर रस्ता उनकी बात कहे
उन बिन,उनकी बातों को
बिन बतयाए चले गए।

दिन को काटे, रात को जागे
वक़्त ठिठका सा वहीं खड़ा
कोई न पूछे? कैसे बीत रही
अनजाने बन वो चले गए।

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विस्मृतियों के वृक्ष उगा कर
अमरबेल सी यादें उलझा कर
पक्षियों के कलरव मधुर रस में
क्रंदन करता सब छोड़ गए।
अपर्णा शर्मा
May 30th,25

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