उगती फिर दूब दुबारा

जीवन की शांत सरिता में
मन की नौका करे विहार
जटिल सी उठती लहरों में
थामी अभिलाषाओं की पतवार।

सुख की लहरे उठे तुंग तक
पर क्षणिका हुई मात्र
दुख की लहरे ठहरी पैठ तक
करे हर साँस क्लांत।
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आशा से भरी मन की नैया
जीवन की सरिता में घूमे
निराशा के बोझ से मन नैया
बीच भँवर में खूब जूझे।

आशाओं के फल न मिलने से
नौका में पड़े कई दरार
और मन की दरार से पहले
जीवन में सूखे जल की धार।
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बंजर मन ऐसा बावरा जो
ढूंढे हर पल किनारा
हल्की सी आशा की फुहार में
उगती फिर दूब दुबारा ।
अपर्णा शर्मा
April 11th,25

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