स्व ज्ञान को सर्वोपरि समझ कर
अपने को ही सर्व ज्ञानी जान कर
कूपमंडूक सा अपने को सर्वोच्च जान
सीमित दायरे को अपनी दुनिया जान कर।
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अकेले अपनी जिंदगी गुज़ारे जा रहा
खुद की खड़ी दीवारों में खुद कैद कर रहा
इन ऊँची दीवारों को अपनी सफलता जान
खुद को खुदा सा समझता जा रहा।
दुनिया से बेख़बर अपने जाल में फंसा
उन्नति, उत्थान से हो कर बेपरवाह
सोचता मेरे उत्थान से ईर्ष्यालु है सब
मुझसे अब कोई आँख न मिला रहा।
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कोई उसको निकाले तो कैसे निकाले?
जब तक वो खुद कूप से निकलना न चाहे
सब साधन लिए, हितैषी कोशिश में जुटे हुए
निकास की तीव्र इच्छा की प्रतीक्षा लिए।
अपर्णा शर्मा
Feb.23rd,24
