गुमाँ

नादां हवा को ना जाने क्यों गुमाँ हो गया है चिराग बुझाने का।
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उसे इल्म नहीं कि बाती में रोगन आज भी है मोहब्बत का।
अपर्णा शर्मा
Nov.7th,23

अनकही

ना उस ने कुछ कहा कभी
ना मैंने करी कोई बतकही।
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फिर भी पहुँच गई उसकी
मुझ तक वो सारी अनकही।
अपर्णा शर्मा
Oct.31st,23

ठोकर

ठोकरें भी जरूरी सी रही जिंदगी में
जो ताउम्र सम्भल कर जीना सिखा गई।
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उड़ते रहे जो सारे जहाँ औ आसमाँ में
कि आंधियां पंखों को साध ना सिखा गई।
अपर्णा शर्मा
Oct.24th,23

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