यूँ तो लकीर के फकीर होना बिल्कुल सही नहीं
और ज़माने ने सिखाया लकीर पीटना भी ठीक नहीं ।
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गर बदलनी हो, किसी को,अपनी तक़दीर की लकीरें
पानी सी कर जिंदगी, जिसमें खिंचती कोई लकीर नहीं।
अपर्णा शर्मा
Jan.9th,24
कैलेंडर
कुछ ख्वाहिशें,जो ख्वाब थी ,बन गई
उस ख्वाब को अब फिर हौसला दे गई
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बारह मास के इस तारीख-ए-गुच्छ में
उम्मीद की रोशनी फिर दीदार दे गई.
अपर्णा शर्मा
Jan.2nd,24
मुकाम
समझ ज्यों बढ़ती गई,
मासूमियत खोती रही.
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मुकाम पार करती गई
जिंदगी तमाम होती रही.
अपर्णा शर्मा
Dec.26th,23
