अंत में, अस्तित्व खो कर समन्दर हो गई
मीठी नदी,समंदर में मिल कर खारी हो गई
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चटकी तो होगी चाहत और डिगा होगा विश्वास भी
आखिर क्या थी मैं? जो प्रेम में अपना सत्व खो गई।
अपर्णा शर्मा
May 7th,24
ईश्वर
बहुधा उन्हें हर बात पर मौन देखा है
भाव शून्य होते हुए अक्सर देखा है।
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धीरे धीरे एक स्थिरता की स्थिति में
माता पिता को ईश्वर होते हुए देखा है।
अपर्णा शर्मा
April 30th,24
आईना
एक आईना ऐसा भी रख अपने पास में
जिसमें जैसा है अपना वज़ूद ,वैसा दिखना चाहिए
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कोने तो रोज ही दरकते रहते हैं आईने के
बस रिश्ता,आईने में, पहला से दिखना चाहिए.
अपर्णा शर्मा
April23rd,24
