झिलमिलाते सपनें
उठती चाह की लहरे
बजती शहनाईयां
और संगीत के तराने।
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नाचते तुम हम
कैसे देखूँ इन्हें
सुनूँ कैसे बतकही
समझे सभी अनकहे।
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नहीं जानती तरकीबे
और ना ही तौर तरीके
बस अपने को समेटते
ये बोलती है निगाहें।
अपर्णा शर्मा
July 9th,24
ख़ामोशियां
अंदेशे का शिकार होती हैं ख़ामोशियां
एक तरफा शिकायत होती है ख़ामोशियां।
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कहते हैं आते तूफ़ाँ की पहचान होती है ये
बड़े ज़ख्मों के लिए तैयार करती हैं ख़ामोशियां।
अपर्णा शर्मा
July 2nd,24
धुएँ के राज
गंध और सुगंध धुएँ का कारण बता देते हैं
गलती हुई या हवन सब राज खोल देते हैं।
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काश अंतर्मन में उठे धुएं को कोई पहचान लेता
जान ले कोई,कि कितनी आग में मन जले होते हैं।
अपर्णा शर्मा
June25th,24
