मजे में वक़्त बीता कर, जो वक़्त की, कजा नहीं करता है।
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जान लो, वक़्त है उसी का, जो अड़े वक़्त का, इंतजाम रखता है।
अपर्णा शर्मा
June 10th,25
*(कजा-गुजारना )
ब्याह की मेहंदी
इन सुर्ख हाथों में छिपे होते,अनंत एहसास
पिता की उदासी और पिया का अनुराग।
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दो घरों में बंटती हुई,बेटियों की शख्सियत
और घिरे होते अनिश्चितताओं के ढेरों बादल।
अपर्णा शर्मा
June3rd,25
फलसफा
जब वालदैन द्वारा,अपने ही बच्चों को अपना वालदैन बनाना
जैसे, जहां से शुरु किया सफर, फिर वहीं आकर ठहर जाना।
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जी कर पूरी जिंदगी का चक्कर, और एक फलसफा कह जाना
फिर एक सुबह खुद अफ़साना बन, दुनिया को अलविदा कर जाना।
अपर्णा शर्मा
May, 27th,25
