गुरु

सदा से,बालक की प्रथम गुरु, माँ ही कहलाती।
ममता में वशीभूत हो, नेह भरी दुनिया दिखलाती।

पिता जीवन में, सदैव से कटु पाठ पढ़ाते।
बालक को दुनिया की,सत्यता का ज्ञान कराते।
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एक गुरु ही है जो बालक को शुद्ध पाठ पढ़ाते।
कभी प्रेम से,कभी डपट से दुनिया को दिखाते।

संस्कारों से परिपूर्ण बालक घर का मान बढ़ाता।
व्यवहार सीखा गुरु, बालक को,उन्नति का मार्ग दिखाता।
(गुरु पूर्णिमा पर)
अपर्णा शर्मा
July 3rd, 23

जीवन में कागज

कश्ती बना तैरा दी बारिश में
तब जाना कागज को जीवन में
नित नए नए खेल जुड़ते गए
खूब जहाज उड़ाए नील गगन में।
जीवन में कागज का आगाज हुआ।
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अंजुरी में खिली कलिया कागज की
खुशबू महके जिनमें बचपन की
चोर,सिपाही,राजा,वजीर की पर्चियां
छुपी खट्टी-मीठी लड़ाई अपनेपन की।
जीवन में कागज का उन्नयन हुआ।

खेलों की पर्चियां पाती रूप में आई
कागज का रुप धर प्रेम ऋतु आई
धीरे-धीरे पाती जीवन में बनी दस्तावेज
एक अदद रोजगार की भागदौड़ आई ।
जीवन में कागज श्रंगार हुआ ।
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आहिस्ते से आगाज हुआ पीली चिट्ठी का
हरा हरा सब दिखा,हाथ में कागज आया हरा
तब फिर कागज वसीयत में तब्दील हुआ
अचानक अश्रु दे गया वो कागज कोना कटा।
जीवन कागज में अंकित हुआ।
अपर्णा शर्मा

June 30th, 23

अधूरे खत


अधूरी जिंदगी जैसे, अधूरे ही रहे खत
दूर होती मंजिल से, मचलते ख़्वाब से खत।

तैरते बादलों में, आसमानी करते आधे से खत
कभी पुष्पों से मकरंद पान करते वे अधूरे खत।
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कुछ लिखित और कुछ कल्पना में विचरते
पढ़ जिन्हें, अनोखी दुनिया की सैर करते।

शुरु ऐसे कि, लगे आज, पूरा खत है लिखा
बाकी अगले पत्र में..,पढ़,लगे रिश्ता शेष है बचा।
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यादों में..,लिख अपूर्ण पत्र ,आस मन में जगाता
रिश्तों की सम्पूर्णता को बहुत करीब से दिखाता।

कभी अंत,पूर्ण विराम से न हो, प्रेम के खतों में
प्रेम ऐसे ही अनवरत रहे अधूरा, अधूरे खतों में।
अपर्णा शर्मा
June 23rd, 23

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