नफ़रतों का ज़हर

नजीर से भरे वो दिन खो गए
इधर से उधर कहीं बिखर गए
अज़ान से गूंजती थी कभी सुबह
जागता था तब सूरज अलसुबह
तब बसता यहाँ मोहब्बत का शहर था।
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सुहानी सी शाम और नाद घंटियों का
तराना लहराता फ़िजा में,आरतीयों का
हर कोई सुकून से विचरता, बेफिक्र सा
डर नहीं अंधेरी रात का,मगन वो सुखद शाम सा
तब बसता यहाँ मोहब्बत का शहर था।
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अदब से मिलना,सभी का रिवाज था
कोई फर्क़ नहीं कि राम राम,या सलाम था
अति विश्वासी अपने धर्म का,पर पहले वो इंसान था
पूरी दुनिया में सर्व धर्म समभाव ही हमारी पहचान था
तब बसता यहाँ मोहब्बत का शहर था।

गुम हैं हर कोई,मतलब से भरी दुनिया के,जुनून में
गुम है कहीं इंसानियत,धर्म पर चढ़े नफरती लिबास में
घृणा में डूबा वो आम जन, अब ना बेख़बर है
कड़वी, सख्त जुबान का हुआ ऐसा असर है
अब फ़िजा में घुला नफरतों का जहर है।
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काश! कबूल हो जाए, दुआ हम सभी की
घुल जाए हर गांव, शहर में हवा प्रीत की
गंगा जमुना से मिल,एक दूजे में,प्रयाग तीर्थ बने
ईद, दिवाली, वैशाखी सभी हमारी पहचान बने
ये ठहर कर,बस जरा! समझने का पहर है
देश मेरा नफरती जहर से नहीं मोहब्बत से अमर है।
अपर्णा शर्मा
August 11th, 23

दीवारें

जमीन के खिसकते ही
छत खुद ब खुद छिनते ही
ठौर जब कोई नहीं रहा
जिंदगी दीवारों के आसरे रही।
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संकुचित मन के विस्तार से
स्व से स्वार्थ तक के प्रसार से
आघात में अन्तर जब दरकता
हल निकलता तब दीवार से।

जानती पहचानती है करीब से
हर्ष और वेदना को समीप से
अपने में ज़ब्त कर सभी राज
दीवार भीगती स्वयं आँसुओं से।
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धैर्य की धनी सदा से रही
चुप सब कुछ सुनती रही
मौन उसका टूटता नहीं
दीवार कुछ कहती नहीं।
अपर्णा शर्मा
August 4th, 23

सितारे

जब सितारे टूटते है
किसी को खूब भाते है
बंद कर नयन वो अपने
इच्छा को बुदबुदाते है।
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वैज्ञानिक देख कर टूटते सितारे को
जानते इसके भौगोलिक कारण को
सभी गति और समय के समीकरण लगा
ढूँढ ही लेते ,धरती पर सितारे के प्रभाव को।

कहीं गांव में जब ये सितारे है टूटते
धक से दिल की धड़कन को रोकते
पसीने में तरबतर शरीर,अनहोनी की फिक्र
माँ है वो सैनिक की, सलामती को हाथ उठते।
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हर किसी के लिए, सितारों का टूटना
कहीं खुशी की बात,कही दिल का दहलना
ऐसा है आकाश में टंके सितारों का सफर
जैसे हर पल किसी कहानी का बदलना।
अपर्णा शर्मा
July 28th, 23

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