मनहर हिंदी

कंठहार सी मनहर हिंदी
भारत की पहचान है।
हर राज्य की भाषा से भी
न हिंदी अनजान है।

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बेशकीमती नगीने जैसी चमक
रही,हर क्षेत्र की भाषा है।
इनको एक सूत्र में हार बनाती
अपनी हिंदी भाषा है।

समाज में बोली जाती विभिन्न
प्रकार की भाषा।
देश प्रेम से ओतप्रोत कर देती
प्यारी हिंदी भाषा।

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औपचारिक भेंट में बोली जाती
अब अंग्रेजी भाषा।
सादा,सरल मिलन में खूब नेह
बरसाती हिन्दी भाषा।
अपर्णा शर्मा
Sept.14th ,23

(हिन्दी दिवस पर विशेष)

नटखट बचपन

प्रत्येक बालक राम,कृष्ण सा
जिए बालपन को बेफिक्र सा
नटखट बचपन खूब रिझाए
घर-आंगन में जब घूमे कृष्णा।

हर बाल गोपाल की लीला होती न्यारी
एक बालक ने अंगुठी बोदी जो थी क्यारी
रोज उसमें पानी देकर खूब निहारता
सोचता पेड़ उगेगा,अंगुठी लगेगी प्यारी प्यारी।
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एक दिन पिताजी ने एलान किया
सामान बाँधों, तबादला हुआ
सब अपना सामान लगे बाँधने
पर गोपाल हैरान परेशान हुआ।

जो अंगुठी बोई थी क्यारी में उसने
पेड़ नहीं निकला था अभी तक उसमें
फिर बातचीत से पता लगा था उसको
बीज़ दुबारा बो सकते हैं कहीं और पे।
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सब अपना सामान बाँधने में थे व्यस्त
भोला गोपाल क्यारी खोदने में हुआ पस्त
पर यह क्या हुआ, ना पेड़, ना बीज़ मिला
आया नए शहर में, मन था अस्त व्यस्त।

एक दिन उसने पिता को अपना हाल सुनाया
पिताजी ने फिर उसको बागवानी का गुण सिखाया
धीरे-धीरे वह सब भूल कर,बढ़ गया आगे
नटखट बचपन याद कर,आज फिर मुस्कुराया।
अपर्णा शर्मा
Sept.8th,23

गुरु

संस्कार के वाहक सदा रहे हैं कुटुंब
और गुरुओं ने दी जीवन की पहचान
सम्पूर्ण ज्ञान पुस्तक में ही रह जाता
गर गुरु न कराते हमें इसका भान।
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शिशु रुप में जन्म लेकर बालक
शिशु बुद्धि से पूरा कर जाता जीवन
नहीं सीख पाता वो सांसारिकता
गर गुरु न बनाते शिशुओ को इंसान।

विद्या से ही पाते बालक ज्ञानार्जन
और संग में करते चरित्र निर्माण
सही गुरु के सानिध्य से ही बालक पाते
धनोपार्जन का, इस जग में, अनुपम सम्मान।
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शिक्षा में घुमक्कड़ी भी होता है एक प्रकार
देश विदेश का ज्ञान कराए बिना किसी तकरार
समूह में कार्य करना सीख जाते ऐसे ही बालक
और पाते एतिहासिक और भौगोलिक ज्ञान का भंडार।
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गुरु का बखान शब्दों में कभी नहीं हो सकता
समाज और संस्कृति से शिक्षक का महत्व झलकता
यदि हमारे जीवन में निस्वार्थी गुरुजन न होते
जीवन शायद सभी का कोरा कागज ही रह जाता।
अपर्णा शर्मा
Sept.6th, 23

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