मन

है मन बावरा
मन बेचैन
तन में मन की
गहरी पैठ।
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कभी ज़मी पर
कभी फुनगी बैठे
किनारे तकता
मझधार में नाचे।

मन ही मन का मीत
बतियाए दिन और रैना
हर टेढ़े सवालों का
जवाब देता हरदम पैना।
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ख्वाबों में तैरे मन
दूर दूर तक सैर करे
यहीं मेरा एक मनमीत
जो चेहरे पर मुस्कान धरे।
अपर्णा शर्मा
Sept.29th,23

दहलीज

ऊषाकाल में,स्वागत हेतु जल छिड़काव से
आशा के चटक रंगों में सजी रंगोली से
चहुँ दिशा फैल जाता, शुभ संदेश दिवस का
ऐसे बता देती हैं दहलीज मिजाज घर का।
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दोपहर होते ही पसर जाती है उदासी की चादर
झूलती है,आशा निराशा के झोंके ले थकान के झूले पर
न जाने किस के आराम में पड़ी है खटिया इंतजार की
रौनक, बेरौनक खूब बयां हो रही, घर की दहलीज पर।

गोधूलि में गैया के लौटते ही,बछड़ो का रंभाना
घोंसलो में पंछियों का चहचहाते हुए लौटना
आशा का संचार मन मस्तिष्क को तृप्त करता हुआ
और चुपचाप एक दिया इंतजार का दहलीज पर रोशन करना।
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रात को दहलीज को इंतजार है किस्से कहानियों का
बालकों की हंसी ठिठोली में डूबी मस्तियों का
देखती है बंधन की डोर को मजबूत होते हुए
और मुस्कराकर,खुशी को छिपा बंद कर लेती हैं दर दहलीज का।
अपर्णा शर्मा
Sept.22nd,23

हार-जीत

गिरते-उठते, चलना सिखा गई जिंदगी
चलते-चलते रास्ते सूझा गई जिंदगी
जिंदगी में रास्ते तराशने की जुगत में
जिंदगी को बेहतर जीना सिखा गई जिंदगी।
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सदा ही दो किनारों संग चली ये जिंदगी
जैसे कहानी में चलती है बात सच्ची और झूठी.
अंत तक नहीं पता,क्या सीखा रही बेरहम
हरा गई या जीता गई बहुरूपिया सी जिंदगी

अंत में, समझ इतना ही आया बस मुझे
हार और जीत संग-संग दिला गई मुझे
जब मंजिल मिली तो हार गया था सफर
सफर को हरा,मंजिल दिला गई जिंदगी।
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शिक्षा में जीता तो बचपन हार आया था
श्रेष्ठ जीवन हेतु,गाँव,संगी,सभी गवाया था
इस तरह शतरंज सी जिंदगी की हरेक शै याद आई
हार पर रोया, कभी जीत पर आँख भर आई।
अपर्णा शर्मा
Sept.15th,23

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