फुर्सत में

अपने अपनों से मिलने
परदेस को है जब उड़ते
अपनों को यहाँ छोड़कर
क्या याद हमें भी करते?
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भागमभाग की जिंदगानी में
ऐसे फुर्सत के क्षण भी है आते
उनमें अपनों का अपनापन
क्या वे क्षण खूब रुलाते?
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यहाँ भी इंतजार की घड़ियां
मानो जैसे बंधन की कड़ियां
फुर्सत भी सूनापन गहराती है
देती यादों की जलबुझ लड़ियां।
अपर्णा शर्मा
Oct.20th,23

साँझ

जीवन के सफर में आते कई पड़ाव
कभी आशा भरी होती सुर्ख उजास
ऊँचाईयां छूता मध्याह्न जीवन का
फिर शीतलता दे जाती जीवन में साँझ।

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साँझ अप्रतिम सी करती भाव विभोर
नित नई महफिल से लगे जीवन की भोर
सभी कार्यों से निवृत्त जीवन देता असीम सूकून
शौक अपने पूर्ण करे अब नहीं किसी से होड़।


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साँझ को रात ना समझना यारो
ये साँझ मेहनत का फल तुम जानो
जीवन में रात जब अपनी चादर तानेगी
साँझ के ये पलछिन ही देंगे, नई ऊर्जा प्यारों।
अपर्णा शर्मा
Oct.13th,23

पर्दा



कभी खूबसूरती बढ़ाता
कभी सम्मान दिलाता।
लज्जा को भी दर्शाता
सुंदरता का आभास कराता।
शब्दों में ग़र हो पर्दा
निकटता को बढ़ाता।
आचरण का पर्दा
आपसी सौहार्द लाता।
वहीं अच्छाई पर पर्दा
बुराईयां ही बढ़ाता।
शिक्षा पर पर्दा
अशिक्षा ही लाता।
खिड़कियों पर पर्दा
चार चाँद लगाता।
दुल्हन का घूंघट
सूरज सा दमकता।
आँखों का पर्दा
सबसे ही उत्तम
आँखों पर पर्दा
अंध विश्वास का द्योतक।
दिमाग का पर्दा
अल्पज्ञान दिखाता
पर्दा कभी सही, कभी गलत
का सदा ज्ञान कराता।
अपर्णा शर्मा
Oct.6th,23

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