पंच दिवसीय पर्व, घर-घर खोज रहा रौनक को
मार्ग तिराहे,चौक-चौबारे,लुभा रहे हर दिल को।
हर आँगन,सज रही, रंगों भरी रंगोली
नित-नई अल्पना,मनभावन खूब उकेरी।
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घर-आंगन में,चमक धमक की दिवाली आई
रात में रंग रंगीली लड़ीया बतिया खूब बनाई।
इनके मध्य, मस्ताना कंदील,बना है,कृष्ण कन्हैया
खील,बताशे,खांड-खिलौने देख मन हुआ ललचईया।
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आँगन बैठी, बूढी दादी, न जाने चुप क्यों बैठी है ?
सारी रौनक उड़ी यहाँ से,दूजे घर अब वो बसती है।
अपर्णा शर्मा
Nov.,10th,23
जब शहर में मेला आता
शहर और गांव में मेल कराता
जीवन में रोमांच भर जाता
गांववासी अपनी हाट सजाते
शहरी अपनी खोज पे इतराते
जब शहर में मेला आता।
शहर शहर खूब पंडाल सजे है
जन सारे माँ का स्वागत करे है
ऋतु परिवर्तन का संदेश है देता
कन्या को देवीरूप में पूजा जाता
जब शहर में मेला आता।
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गरबा की तैयारी खूब है होती
ऐसे दिन छोटे,रातें लंबी होती
नई ऊर्जा को संचारित करता
गरबा पूरे देश में धूम मचाता.
जब शहर में मेला आता।
राम लीला का मंचन होता
प्रतिवर्ष सत्य जीत ही जाता
नई आशा कहीं आश्वासन देती
असत्य की कभी जमीन न होती
जब शहर में मेला आता।
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झूले, दुकानें और खेल खिलौने
सातवें आसमाँ की उमंग दे जाते
कोई मेले को,जी भर जीता
कोई अपनी यादों में है खोता
जब शहर में मेला आता।
अपर्णा शर्मा
Nov.3rd,23
जिद
जो जिद लक्ष्य को पहुंचाए
मन में जगह बनाती है
गर लक्ष्य विहीन कर जाए
फिर कहाँ सुहाती है?
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बालहठ और स्त्रीहठ
प्रसिद्ध खूब है दुनिया में
युवामन की हठ से ही
नए आयाम पाए दुनिया ने।
कभी कभी बुजुर्ग भी
जिद पर ऐसे अड़ जाते हैं
घर-बाहर, सभी दिशा में
सबकी नींद उड़ाते है।
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जिद वहीं है,जो स्वयं ही
पाली पोसी जाती है
खुद को खूब खुश करे और
औरों के होश उड़ाती है।
अपर्णा शर्मा
Oct.27th,23
