तुम्हें पता है न
मेरा तुमसे पहले उठ जाना
सब कुछ व्यवस्थित करना
हर वस्तु को सही स्थान देना
नहीं पता इसके पीछे छुपा प्रेम।
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तुम्हें पता है न
मेरा हर पल परेशान रहना
परेशानी में साथ खड़े रहना
और तुम पर आँच न आने देना
नहीं पता इसके पीछे छुपा प्रेम।
तुम्हें पता है न
मेरा हर खुशी को जश्न में बदलना
जश्न में जोश से हरपल भरे रहना
हरपल को नया आयाम देते रहना.
नहीं पता इसके पीछे छुपा प्रेम।
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तुम्हें पता है न
घर को चलाएमान रखने का अंदाज
जिंदगी में सुरों की सरगम की ताल
मैं और तुम का हम,जो बना हमराज
बस नहीं पता इसके पीछे छुपा प्रेम।
अपर्णा शर्मा
Dec.15th,23
दुःख और दर्द
दुःख आया,तो ज़माने ने कुछ यूं बाँट लिया
कि दर्द के साए, मेरे साथ जिए जा रहे हैं।
खूबियों को ज़माने पर,इस खूबी से लुटा दिया
पर दर्द को, बस कागज पर उकेरे जा रहे हैं।
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उदासियों को, दिन की खुशियों में छुपा दिया
और दर्द को रातों का सामान करते जा रहे हैं।
शोक में कभी डूबना और तैरना सीख लिया
ऐसे दर्द -ए-एहसास को, समंदर करते जा रहे हैं।
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ज़माने ने दर्द में जीना गज़ब का सिखा दिया
अब दर्द को ही जिंदगी समझते जा रहे हैं।
कोई मलाल के बगीचों को सींचता रह गया
वो दर्द को सीढ़ी बना जिंदगी जिए जा रहे हैं।
अपर्णा शर्मा
Dec.8th,23
#लेखनी
समाज को शंकित करने पर
समाज के भयभीत होने पर
व्यक्ति जब-जब मौन हो जाए
तब निगाह ठहरती है लेखनी पर।
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देश के हर काल अकाल की
सैनिकों के प्रेम और शहादत की
गरीबों मजदूरों के बेबस दुःखों पर
मुखर आवाज होती तब लेखनी की।
बालकों पर नित होते दुर्व्यवहार को
नारी पर असीमित होते अत्याचार को
वृद्धों पर चिर निद्रा में सोते समाज पर
तेजधार लेखनी ही जगाती फिर समाज को।
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ग़र कभी लेखनी चापलूस हो जाए
झूठी शान में ग़र कभी भटक जाए
तब लेखनी समाज को गर्त में है डालती
माँ के आशीष सी कुछ लेखनी राह दिखा जाए।
अपर्णा शर्मा
Dec.1st,23
