सेव,मठरी,गुजिया और दही बड़े
हथियार थे पिचकारी और गुब्बारे।
कच्ची उम्र में दोस्ती के रंग थे पक्कम पक्के
रंगबिरंगे रंगों से उड़ाते थे हम सभी के छक्के।
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शीतल ठंडाई पी पी होली आती थी अपने रंग में
कांजी होली को खूब नचाती थी फिर अपने संग में।
अब ना बनते वैसे प्यार भरे भंग के कुल्हड़
दूर कहीं सो गए सब, अपनेपन के सारे हो-हुल्लड़।
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अब भी रंगों की कमी कहीं नहीं दिखती
पर बचपन की टोली दिल में बहुत कसकती।
मात्र रिवाज निभाना ही रह गए अब त्योहार
दूर से दो बधाई और संजो लो,यादों का संसार।
अपर्णा शर्मा
March25th,24
फाग
माघ की सुबह की कहानियाँ
फाग की रात का गीत बन रही.
और गांव की कहानी कहती
नारियां फाग के गीत गा रही।
धरा हर ओर छोर से, गुलाल सी
पुष्प,पत्रों में महक रही
मंडराते भौरों और तितलियों संग
कोयल भी बागों में कुहूक रही.
शीत से सिकुड़ी वसुधा अब
अंगड़ाई ले, पलकें यूँ खोल रही
माघ की सुबह की कहानियाँ
फाग की रात का गीत बन रही।
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पौष,माघ में ठिठुरते सभी जीव
प्रेम गीत अब गा रहे
गुलमोहर,पलाश प्रेम के
पाश में बंध आग से दहक रहे
प्रेम का आँगन बनी नवेली वसुधा
त्योहारों की रंगोली सजा रही
माघ की सुबह की कहानियाँ
फाग की रात का गीत बन रही।
गेहूँ की बालियां सरसों संग
खेत में नृत्य कर रही
हिमालय की हिमा भी सब देख
मंद-मंद पिघल रही.
आम की बौराई भी फाग को
और बौरा रही
माघ की सुबह की कहानियाँ
फाग की रात का गीत बन रही
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प्रकृति का नया उल्लास,
नए जीवन का रंग भर रहा
अनुराग मधु से भरी धरा को
मधुर सुरभित कर रहा
वर्ष का अंत इस तरह फाग
के रंगों में घुल रहा.
अनंत वर्णों से सजा पूर्णिमा को
फाग विदा ले रहा।
अपर्णा शर्मा
March 22nd,24
पतझड़
स्वागत नव कोपलों का
मौसम पुष्प पल्लवों का
शुष्क हवाओ में झूमते
मदमस्त झोंका बयार का।
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शीत तरंगो में झूमते लहरते
मौन ठाने, माघ को ताकतें
अधीर इंतजार बहार का
विदाई प्राणप्रिय पत्रों की झेलते।
विजय होकर प्रचंड शीत से
गर्वित हो,गाते गीत प्रीत के
अल्हड़ गोधूम मौज में झूमता
ढलती शिशिर के प्रकोप से।
ऋतु बसंत,राजा कहलाता ऋतुओं में
मधुरस में मतवाला माघ फागुन झूमे बेसुधी में
टेसु,गेंदा,गुलाब गुलाल से फैले वसुधा में
उल्लास नया भरते सबके बैरी पतझड़ में।
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कई पतझड़ झेले,दूर खड़ा ठूंठ वृक्ष
अपनी नव पौध में देखता अपना अक़्स
सोच रहा हर बार पतझड़, बसंत नहीं लाता
चिर पतझड़ ओढ़े झांक रहा अपना अंतस।
अपर्णा शर्मा
March15th,24
*गोधूम-गेहूँ
