पलाश

पहाड़ों के आगोश में
दिलों के दबे अरमान से.
जब खिलते हैं पलाश
मचलती है फिर तलाश।
https://ae-pal.com/
जो बिछुड़ गया पत्र सा
पतझड़ के वियोग सा
खिला गया फिर बसंत
आ गया फिर सैलाब सा।

शंख सा शुभ आकार लिए
वनों में,दिलों में आग लिए
नदी सी निरव जिंदगी में
फिर वहीं अरमान सुलग गए।
https://ae-pal.com/
तेरे आगमन के अनंत होते इंतजार में
एक पुष्प और जुड़ा उस तेरे पुष्प हार में
जिस बरस ना खिलेगा जब ये पलाश
आखिरी बरस होगा शायद तेरे इंतजार में।
अपर्णा शर्मा
May 3rd,24

उगता सूरज

विभावरी संग आकाश गंगा के आंचल में
कभी टंकते,कभी उधड़ते रहे अनगिनत सितारे
तब नव दिवस का संदेश दिया शुक्र नक्षत्र ने
कुछ ही समय बस शेष था अरुणोदय में।
https://ae-pal.com/
शैय्या को त्याग कर, कर्म को हो रहे  तत्पर
गृह स्वच्छ कर, अल्पना सज रही देहरी पर
इष्ट वंदन और करबद्ध प्रतीक्षा आगमन की
नित्य स्वागत को प्रतीक्षित रहते नारी और नर।

शनैः शनैः पर्वत के पृष्ठ पर लालिमा छाई
शिशु सी किलोल करती जल तरंग पर आई
प्रकाश पिनाक से निकल कमान किरण की
डाल, पात से गुजर अट्टालिका पर छाई।
https://ae-pal.com/
पक्षियों का कलरव,और पशुओं का बोलना
कलियों का पुष्पों में परिवर्तित हो महकना
तितलियों के संग भौरों का होता जब गुंजन
यूँ उदित हो सूर्य,संचारित करते संसार में जीवन का।
अपर्णा शर्मा
April 26th,24

काँच से रिश्ते

प्रेम से खूब सँवारे थे
ख़यालों से सहेजे थे
सब ने पोषित किए
मोहब्बत के रिश्ते थे.
https://ae-pal.com/
प्रेम के बीज़ बो कर
लता सा मिला आकार
इक दूजे के गलबहियां
बीत रहा समय संसार.

क्षण के सोच का असर
छा गया फिर इस कदर
छन से टूट गया रिश्ता
बिखरा काँच सा इधर-उधर.
https://ae-pal.com/
रिश्ता रुसवा हो गया
काँच दिल में चुभता गया
समय पर न सचेतना
रिश्ते को दाग दे गया.
अपर्णा शर्मा
April 19th,24

Blog at WordPress.com.

Up ↑