गुलमोहर

उदास दिल को मनाने
मधुर पल को संजोने
करते हो जब तुम आलिंगन 
ऐ गुलमोहर! कैसे हो बहलाते ?
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प्रतिवर्ष स्वर्ण सा खरा तपकर
कुंदन सा तुम पोर-पोर खिलकर
शीतलता भी तुमसे मिले प्रेम तपिश में
ऐ गुलमोहर! कैसे चमकते हो चुप रह कर?

जब भी तुम्हारी छत्रछाया में होती खड़ी
बुन जाती है,प्रेम की अमिट मंजुल लड़ी
तुम भी बारिश से पत्रों में बरस बरस कर
ऐ गुलमोहर! कैसे बनाते हो यादो की सुनहरी घड़ी?
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शीत से हिम हुए सुप्त प्रेम को 
तुम्हीं बढ़ा जाते हो प्रेम ताप को
पुष्पपत्र झरते मानो प्रेम पत्रों के शब्द बिखर गए
ऐ गुलमोहर !कैसे समेटते हो हर लम्हे को ?
और मैं अपने वज़ूद में कहीं ढूँढती हूँ गुलमोहर को?
स्वरचित:
अपर्णा शर्मा  June 28th,24

प्रथम प्रेम

मुस्कराते चेहरे पर
आँखों में नमी
मचलते कदमों पर
पंख सी उड़ान है
प्रथम प्रेम.
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उमस भरी गर्मी में
मन मानो शरबती
खसखस पर पानी की
ठंडी बयार है
प्रथम प्रेम.

अंधेरी घनेरी रातों में
ओस का मधुर स्पर्श
दुग्ध सी श्वेत चांदनी का
उज्ज्वल प्रकाश है
प्रथम प्रेम.
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जल सा निर्मल
काँच सा पारदर्शी
नदी की बहती
शुभ्र धारा है
प्रथम प्रेम.

पुकार उस नाम की
जो कभी कहीं चौका दे
रोए रोए में बसी वो
सिहरन है
प्रथम प्रेम.
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ईश्वर सा मान कर
साँसों में स्थापित
जीवन की अविरल
आत्मा है
प्रथम प्रेम.
अपर्णा शर्मा June21st,24

तजुर्बा

धुँधला गई थी जो लकीरें
वक़्त बदलते ही गहरा गई
मुलाकात होते ही उनसे
सब शिकायतें धरी रह गई .
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वक़्त की चादर ने ओढ़ी थी
जो आज से मूँद कर आँखे
वक़्त का कमाल तो देखो जरा
उसी चादर पर कसीदे निकाल रही.
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हालात से मजबूर हो कर
बंद करदी थी जो वक़्त ने किताबे
वक़्त के सही और सही होते ही
खुली किताब सी सारी पढ़ी जा रही.
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वक़्त के सितम देखो,चेहरे पर
लकीरों से खिंचते चले गए
वक़्त की मेहरबानी रहनुमा पर
ऐसी रही कि उसे तजुर्बा नाम दे रही.
अपर्णा शर्मा
June14th,24

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