अनुपम देन

आँचल में समाया,जहाँ अथाह अमृत निधि
शिशु के जीवन को देता जो अगाथ अंबुनिधि
प्रथम स्पर्श, प्रथम पान और दे कर स्नेह अटूट
अंक में समा सीखाता शिशु को समस्त जीवन विधि।
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सम्पूर्ण धरा की जननी को मिला ये अनुपम वरदान
स्व संततियों को पीयूष बूंद से देती वृद्धि और प्रज्ञान
पयोधर की शक्ति से पोषित है सभी विस्तरित संतति
कोमलता संग कठोरता भी सिखाते  जैसे पर्वत की चट्टान।

कभी पुरुष स्त्री पर निंदित दृष्टि के प्रलोभन में
भूलता अंग के कल्याण और कृतज्ञता लोभ में
समझता है वक्ष को यदि मात्र देह का अंग ही
क्यूं भ्रमित है इस मात्र अंग की विषयी लिप्सा में।
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संसार का प्रारम्भ छिपा है, इसी कोमल अंग में
कल्याण और संचालन समाया है वक्ष स्थल में
और साथ ही, मानव का पतन,प्रारंभ होता यही से
शुभ और अशुभ समाहित है सृष्टि की अनुपम देन में।
अपर्णा शर्मा
Oct. 18th,24

तस्वीर

होश संभालते ही, कुछ तस्वीरें बनी जेहन में
जिनमें रचा,पहाड़,झरने और चिड़िया बना मैं
थोड़ी सी ज़मी, जहाँ बैठ कर मैं रास्ते देख लूँ
थोड़ा सा आसमाँ,कि अपनी मंजिल ढूँढ लूँ।
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आसान सी सफर-ए-तस्वीर रखी दिल में
कठिन रही डगर-ए-तकदीर असल में
लगातार मंजिल को उठते रहे कदम
घुमावदार रास्ते थकाते रहे कदम दर कदम।
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आसमाँ की ऊँचाई पर,मंजिल कर रही इंतजार
झुका और,चल दिया खड़ी सीधी चढ़ाई पर
बस यहीं एक रास्ता लगा,जिंदगी के सफर का
सोचा मिली ग़र मंजिल,छू लूँगा दामन आसमाँ का।
अपर्णा शर्मा
Oct.11th,24

काश

बुनता रहा,ठहाकों की गूंज से खुशनुमा सी चादर
मुस्कानों से कढ़े बेल बूटे, बढ़ा गए अपनों का आदर
काश! स्नेह में भीगता ही रहता ये मन का आंचल।
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नाराजगी के दो शब्द चुभ गए दिल में,जो कील से
नफरत का ताबूत तैयार था उन शब्दों के स्मरण से
काश!वो कील से शब्द न होते कभी किसी वार्तालाप में।

चिंता के क्षणों में, समस्या की गठरी को फेंक आते
रोटी से रोटी की जंग,आसानी से यूहीं जीत जाते
काश! पैसे की दौड़ में, गर लालच की होड़ न पालते।
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यहीं सब दूर से ताकता,झांकता रहा ताउम्र
और कोशिश रही पढ़ लूँ मैं, चेहरों की दास्तान
काश! पारदर्शिता से भरा होता अपना आसमान।
अपर्णा शर्मा
Oct.4th,24

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