छुपाए है एहसास कि नहीं,समझती है दुनिया।
दिखाए जो जज़्बात तो भी,हँसती है दुनिया।
छुपाए है जज़्बात, यूँ खिलखिला कर
छुप गई पर्दों में, खुद ही,शरमा कर
हर हाल में कहानियाँ,गढ़ती है दुनिया
छुपाए है एहसास कि नहीं,समझती है दुनिया।
लहरों में नाचती सी वो,हलके से मुस्कुराई
ओढ़ मुहब्बत का दामन, खुद में सिमट आई
हाल -ए-दिल में उसके कहाँ,उलझती है दुनिया
छुपाए है एहसास कि नहीं,समझती है दुनिया ।
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सुर्ख चेहरे ने मुहब्बत की,बयां की चुगली
छिपा के नज़रे गेसूओं से,अपनी,चाहत ढकली
हो जाए गर शक तो तफ़तीश, करती है दुनिया
छुपाए है एहसास कि नहीं,समझती है दुनिया।
आसां नहीं दौर-ए-नफरत में, इज़हार करना
छिपाने के अंदाज़ को,अदा में बदलना
अदाओं पे भी तो ताना,कसती है दुनिया।
छुपाए है एहसास कि नहीं, समझती है दुनिया।
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वक़्त की रवानगी में, छिप गए एहसास
फर्ज़ की ज़मी पे, वो,चुप सी उदास
कब्र पर फूल रखे कि, रिवाज कहती है दुनिया।
छुपाए है एहसास कि नहीं, समझती है दुनिया
अपर्णा शर्मा
Feb. 28th,25
मौन इश्क
वो भी क्या दौर था
जब इश्क मौन था.
इस जुदा से दौर में
इश्क शोर कर रहा।
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कभी इश्क चंचलता नहीं
समझदारी का सफर रहा.
आज मुखर होता इश्क
चपलता को बिखेर रहा।
बनावट से भरे समाज में
अब इश्क वाचाल हो रहा
मधुर प्रेम अब मौन नहीं
मौज सा मचल रहा।
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मौन इश्क,स्वप्न हुआ
विगत सा अब खो रहा
बिना इज़हार,उपहार के
अब इश्क न भा रहा।
अपर्णा शर्मा
Feb.14th,25
गर पंख होते!
प्रातः काल के काम काज को समेट.
फुर्सत में क्यूँ कर हम फोन लगाते?
पंख लगा,फुर्र होते,ना करवाते वेट.
मिलते उनसे जो वर्षों राह है तकतें.
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पंख लगा मिल आती उस बूढ़ी माँ से.
दिनभर बतकही चलती न जाने किस से .
सूना घर,सूना मन,नैन प्रतीक्षा को तरसे.
मिलवा देती उसके प्यारे बिठा उसे पंखों पे.
भोजन,कंबल,कपड़ा देती रात अंधेरे.
जिनके घर बने ये रात के सोए रास्ते
वो भी जीते शायद कुछ पल सुकून से
पंख होते, देखती कौन दुख में सोया रे.
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पंख होते तो क्या-क्या कर देते.
मिलते रोज-रोज अपने प्रिये से.
दूर करते सबके शिकवे, मन से.
शायद,फिर वो करते तौबा हमसे.
अपर्णा शर्मा
Feb.7th,25
